शेयर बायबैक क्या है?
ओपन मार्केट में कोई कंपनी अगर अपने सरप्लस से एक तय टाइम पीरियड में इन्वेस्टर्स से आउटस्टैंडिंग शेयर खरीदती है, तो उसे शेयर बायबैक कहते हैं। ये शेयर मार्केट प्राइस पर या उससे कुछ ज्यादा दाम पर खरीदे जाते हैं, लेकिन यह मैक्सिमम बायबैक से ज्यादा नहीं हो सकता है।
ओपन मार्केट में कोई कंपनी अगर अपने सरप्लस से एक तय टाइम पीरियड में इन्वेस्टर्स से आउटस्टैंडिंग शेयर खरीदती है, तो उसे शेयर बायबैक कहते हैं। ये शेयर मार्केट प्राइस पर या उससे कुछ ज्यादा दाम पर खरीदे जाते हैं, लेकिन यह मैक्सिमम बायबैक से ज्यादा नहीं हो सकता है।
कंपनियां शेयर बायबैक क्यों करती हैं?
वे प्रीमियम पर शेयर खरीदकर बाजार में इसकी संख्या कम करती हैं और शेयर प्राइस को स्टेबलाइज करती हैं। इससे कंपनियों के फाइनैंशल रेशो में भी सुधार होता है। वहीं, दूसरी तरफ बायबैक से कंपनी में प्रमोटर की हिस्सेदारी बढ़ती है और टेकओवर का खतरा कम होता है।
इससे कंपनी को कैसे फायदा होता है?
आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या घटने से फाइनैंशल रेशो बेहतर होगा। सबसे पहले, रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) और अर्निंग/शेयर (ईपीएस) बढ़ता है, जिससे पी/ई सुधरता है। बायबैक से बैलेंस शीट से कैश घटता है और ऐसेट्स बढ़ता है। नतीजतन, इससे रिटर्न ऑन ऐसेट्स (आरओए) में इजाफा होता है।
इन्वेस्टर्स के लिए इसके क्या मायने हैं?
बायबैक से कंपनी सरप्लस कैश से मौजूदा शेयरहोल्डर्स से शेयर खरीदती है, जिससे स्टॉक्स प्राइस को सपोर्ट मिलता है। अगर कंपनी बायबैक को लेकर सीरियस होती है, तो शेयरहोल्डर्स का रिटर्न बढ़ जाता है।
सेबी ने हाल में क्या बदलाव किए हैं?
बायबैक प्रविजन के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सेबी ने कुछ प्रस्ताव रखा है। इसके तहत कंपनी जितने शेयर बायबैक करने का ऐलान करेगी, उसका कम से कम 50 फीसदी उसे खरीदना होगा। वहीं, इसके लिए कम ये कम 25 फीसदी अमाउंट एस्क्रो अकाउंट में रखना होगा। सेबी ने बायबैक के लिए टाइम फ्रेम 12 महीने से घटाकर 3 महीने कर दिया है।
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